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मानसिक स्वास्थ के लिए नए गुर?

मानसिक स्वास्थ के लिए नए गुर?

मानसिक रूप से मज़बूत होना और दिखना दो अलग-अलग बातें हैं. हम सभी के लिए, जो एक बेहतर दुनिया चाहते हैं और उस के लिए काम कर रहे हैं, अपनी mental health को सशक्त रखना एक चुनौती है. देश की वर्तमान स्थिति इसे और भी कठिन बना रही है. ये स्वाभाविक है कि ऐसे में कई बार हम हताश महसूस करते हैं. पर हताश महसूस करना या बहुत चिंतित या दुखी होने का ये मतलब नहीं है कि हम अंदर ही अंदर बर्बाद हो जाएँ. हम में से बहुत से लोग अपनी मानसिक पीड़ा को ज़ाहिर नहीं करते. शायद हम ये इसलिए करते हैं क्योंकि दोस्त और दुश्मन, दोनों के लिए ही हमारा मज़बूत दिखना ज़रूरी है. पर इस के साथ ही हमें ये समझना चाहिए कि जिस तरह शारीरिक दर्द के लिए इलाज चाहिए, उसी तरह हमारे भावनात्मक दर्द का समाधान भी जरूरी है. दिल-दिमाग़ की पीड़ा को छुपाने से वो दूर नहीं हो जाती और अगर लम्बे समय तक अनदेखा किया जाए तो ये भारी नुकसान कर सकती है. मैं यहाँ उस दुःख की बात नहीं कर रही जो हर न्याय पसंद इंसान के दिल में उठता है जब वो उत्पीड़न और दमन देखती है. मैं यहाँ उस पीड़ा की बात कर रही हूँ जो हम साल-दर-साल अपने अंदर समाते जाते हैं.

समाज को बेहतर बनाने के संघर्षों से जुड़े ज़्यादातर साथियों को अपने पैदाइश के परिवारों और समाज से विद्रोह करना पड़ा ताकि वो एक अलग राह पर चल सकें. पारिवारिक संबंधों का टूटना बड़े घाव छोड़ सकता है. साथ ही हमारे राजनीतिक सरोकारों की वजह से हमें अक्सर अपने काम की जगहों पर भी मानसिक शोषण का सामना करना पड़ता है. समाज में भी कई लोगों द्वारा हमें बहिष्कृत किया जाता है या हमारी खिल्ली उड़ाई जाती है क्योंकि हम अलग बोलते हैं - अलग करते हैं. हमारे जीवन साथियों को और बच्चों को भी इस व्यवहार का सामना करना पड़ता है. अक्सर उन लोगों की संख्या कम ही होती है जो हम जैसा सोचते हैं और जिन के साथ हम अपनी परेशानियाँ साझा कर सकते हैं. इस सब के साथ ही कुछ और पुराने घाव अधिकतर सभी की ज़िंदगी में होते हैं. ये घाव वो हैं जो ख़ासकर भारतीय समाज में अनदेखे किये जाते हैं. ये घाव हमारे बचपन और किशोरावस्था के बुरे अनुभवों के होते हैं. उदाहरण के तौर पर बच्चों का यौन शोषण. पर किसी बुरी घटना हुए बिना भी इंसान प्रताड़ित हो सकता है. जैसे किसी को लगातार उस के रंग या वज़न या नाक, आँख आदि चीज़ों पर ताने देना. या स्कूल में bullying का शिकार होना. या अभिभावकों द्वारा पीटा जाना या शिक्षकों द्वारा. घर में प्यार न मिलना या उपेक्षित किया जाना. या बड़े होते समय परिवार के किसी सदस्य की शराब जुए या ड्रग्स की लत जिसे बाकी परिवारजनों को झेलना पड़ा हो. अभिभावकों में लगातार आपसी द्वेष और हिंसा भी trauma का बड़ा कारण हो सकता है. जिन घरों में या मोहल्लों में पले-बढे, उन जगहों की समस्याएं - जैसे कपडे बदलने की सामान्य क्रिया में भी असुरक्षित महसूस करना या स्कूल से आने जाने की रोज़ मर्रा की क्रिया में असामाजिक तत्वों से डरे रहना. ऐसे बहुत सी चीज़ें होती हैं जो हमें स्थाई रूप से परेशान कर सकती हैं और जिन के बारे में हम बात नहीं करते.

हम जैसे लोग भी जो राजनैतिक तौर से जागरूक हैं और बदलाव का काम कर रहे हैं, इन घावों को manage करना नहीं जानते. इन का सामना करना न तो हमें सिखाया गया और अक्सर हम ने सीखने के कोशिश भी नहीं की. शायद हम ये जानते भी नहीं थे कि इन से निपटने के तरीके हैं या हमें लगता था कि बस मज़बूत रहो या इस बारे में सोचो मत - सब ठीक हो जायेगा! यहाँ तक कि जब हम ने संघर्षरत साथियों को हिंसा में खोया तो भी हम ने उस shock या trauma से निपटने की औपचारिक या अनौपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली.

जब मैं करीबन 11 साल की थी तो मैंने दिल्ली के एक हस्पताल में शीशे के पीछे सफ़दर हाश्मी को देखा. उन की हत्या की गयी थी. ये वो इन्सान थे जिन्हें मैं कई बार मिल चुकी थी. वो वही काम करते जो मेरे माँ-बाप और मैं करते थे. मैनें जो उलझन और डर उस दिन महसूस किया उस को समझा पाना मुश्किल है. एक 11 साल की बच्ची के लिए ये बहुत ही हिला देने वाला अनुभव था. मैं इस अनुभव के बारे में बहुत बाद में ही किसी से बात कर पायी और मुझे उस trauma से उबरने में काफी समय लगा. क्या आप ने भी कभी ऐसा महसूस किया है? क्या आप का कोइ करीबी कामरेड या जानकार इस तरह चला गया? गौरी लंकेश की हत्या पर या फादर स्टैन स्वामी के चले जाने पर उन के साथ काम करने वालों को कैसा लगा होगा? वो रोये होंगे, चिल्लाये होंगे. रोने और चिल्लाने के बाद की भी एक स्थिति होती है. ये Post Traumatic Stress Disorder (PTSD) की स्थिति कई सालों तक चल सकती है. काश मुझे उस समय काउंसलिंग मिली होती या किसी समझदार व्यक्ति ने मेरा हाथ थाम कर मेरी मनोस्थिति को समझने की कोशिश की होती और उस स्ट्रेस से निपटने के तरीके सिखाये होते. ज़्यादातर लोगों को काउंसलिंग नहीं मिलती पर हम सभी वो तरीके सीख सकते हैं जिन से हम अपने घावों को धीरे धीरे भर सकें, चाहे वो बचपन की यादों की वजह से हों या राजनीतिक संघर्ष की वजह से.

हम सब लगातार कई मोर्चों पर लड़ रहे हैं. ऐसे में यूँ लग सकता है कि मानसिक दुःख-दर्द की बात बेमानी है पर ये सही नहीं है. बल्कि मैं तो कहूंगी कि आज जब हम बहुत मुश्किल समय में जी रहे हैं तो हमारी mental health का मज़बूत होना और भी ज़रूरी है. ये स्वीकारना भी ज़रूरी है कि हर घाव पूरी तरह नहीं भरा नहीं जा सकता पर उसे manage करने के तरीके सीखे जा सकते हैं. इस साल Peace Vigil में हम ने तय किया है कि हम अपने सभी साथियों को ये गुर सिखाएंगे. जैसे जब घबराहट हो तो सांस लेने के कुछ ख़ास तरीकों से अपने को संभाला जा सकता है. अगर किसी बुरी घटना की याद आने से दिमाग़ दिशाहीन लगने लगे तो क्या किया जा सकता है. या फिर अपना आपा खो बैठने से पहले ही अपने शरीर के संकेत समझना सीखें और अपने को कैसे calm कर सकें. हमारी भावनाओं पर किस खाने का क्या असर हो सकता है? सूरज की रोशनी, संगीत और रंगों को हम अपने मानसिक स्वास्थ के लिए कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं? क्या वर्जिश ज़रूरी है और अगर हाँ तो किस तरह की वर्जिश? आइये, ये सब जानकारी हम हासिल करें. इस में शर्म और झिझक की नहीं बल्कि अपने लिए और अपने साथियों के लिए सहानुभूति की ज़रुरत है. ये संभव नहीं कि हर किसी के पास काउंसलिंग की सुविधा हो या कोई ऐसा जानकार आसानी से मिल जाए जो दिल का दर्द सुन सके, समझ सके और सही राय दे सके. ऐसे में ये ज़रूरी है कि हम वो गुर सीख लें जो हमें धीरे-धीरे पुराने ज़ख्मों को manage करना सिखाएं और आने वाले समय की संभावनाओं से निपटने का भी कौशल दें.

हम ने सभी कार्यकर्ता मित्रों के लिए 3 जून, शनिवार को भारत के शाम 5 बजे बेहतर मानसिक स्वास्थ/Better Mental Health विषय पर एक ट्रेनिंग रखी है. हमारे ट्रेनर हैं समीर दोसानी जो कि हमारे सहनिदेशक हैं और एक विख्यात health coach भी. Peace Vigil की सभी ट्रेनिंग्स की तरह, ये ट्रेनिंग भी फ़्री है. अगर आप किसी और कार्यकर्ता को भी बुलाना चाहें, तो उन्हें इस लेख का लिंक भेज दें. याद रहे कि बेहतर मानसिक स्वास्थ ट्रेनिंग/Better Mental Health training में आना आप की कमज़ोरी नहीं दिखाता बल्कि ये दिखाता है की आप और मज़बूत बनंना चाहते हैं. इस में आप से किसी भी निजी जानकारी पर बात करने को नहीं कहा जायेगा. इस training में सभी को stress, shock और trauma से निपटने के तरीके सिखाए जायेंगे. हम सब मज़बूत हैं इसीलिये हम दुनिया को बदलने की कोशिश कर रहे हैं पर हमें नेल्सन मंडेला के ये शब्द याद रखने चाहियें "मैंने सीखा कि साहस भय की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि उस पर विजय है। बहादुर वह नहीं है जो डरता नहीं है, बल्कि वह है जो उस डर को जीत लेता है।”

आप की,
शीरीन
पीस विजिल शांति शिक्षा का काम करने वाली संस्था है. शांति के लिए हम सब के साथ की ज़रुरत है.

ज़िंदा लबों से गा! जन कविता, आनंद क्रांतिवर्धन के साथ. बेओबाब, रेडवुड और नीम.

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